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उत्तराखंड के लोक नृत्य | Folk Dances of Uttarakhand

उत्तराखंड के लोक नृत्य | Folk Dances of Uttarakhand

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उत्तराखंड के कई लोकनृत्य हमे सांस्कृतिक विरासत में मिले है, जो उत्तराखंड के विभि्न स्थानों पर आज भी दिखते है।

उत्तराखंड के लोक नृत्य | Folk Dances of Uttarakhand


(1)थड़िया

गढ़वाल क्षेत्र में वसंतपंचमी से वैशाखी तक आयोजित किया जाता है,यह नृत्य सामान्य-तय विवाहित लड़कों द्वारा किया जाता हैै।
थड शब्द का अर्थ होता है आंगन ,यानी घर के आंगन में आयोजित होने वाला संगीत और नृत्य उत्सव को थडिया कहते है।

(2)पौणा नृत्य 

  यह नृत्य भोटिया जनजाति द्वारा किया जाता है,इसमें हुड़का वाद्ययंत्र का प्रयोग होता है।
 

(3)सरो नृत्य 

- यह नृत्य  टिहरी के नेलचांमी के ठेला में किया जाता है।  इसमें नृतक तलवारों की ढाल पर इस नृत्य को करते हैं।

(4)हारूल नृत्य

 - यह  जौनसार क्षेत्र का नृत्य है , इस नृत्य में रमतूला नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग होता है
 

(5)पांडव नृत्य

 -  गढ़वाल क्षेत्र में पांडव लीला पर आधारित यह नृत्य होता है जिसमें 20 लोकनाट्य होते हैं जैसे चक्रव्यू कमल व्यूह, गैंडी वध ,नयन व्यूह 
कहा जाता है  पांडव देहरादून आये थे, जिसे  प्राचीन काल मे  लाखामंडल नाम से जाना जाता  था, उसके बाद टिहरी और उसके बाद उत्तरकाशी होते हुए हिमालय की ओर गए ।

 (6)मण्डॉण नृत्य  या केदार नृत्य

 - यह नृत्य चार ताल में किया जाता है, यह उत्तरकाशी व टिहरी  में किया  जाता है इसे केदार नृत्य  भी कहते हैं। 
     यह उत्तराखंड के प्राचीन नृत्यों में सबसे लोकप्रिय नृत्य है। यहां के गांवों के खुले मैदान या चौक पर विवाह या धार्मिक अनुष्ठान के अवसर पर मण्डॉण में सभी लोग मिलकर चौक में आग जलाकर पारंपरिक, वाद्य यंत्रों (ढोल , ढमो, रणसिह भंकोर) व गीतो द्वारा देवी - देवताओं का आवाह्न करते है। ज्यादातर गीत महाभारत के विभिन्न घटनाक्रम से संबंधित होते है।

(7)लंगवीर नृत्य

 - यह नृत्य खंम्भे के शिखर पर चढ़कर किया जाता है, यह जौनसार क्षेत्र का प्रमुख नृत्य है

(8)चांम्फला नृत्य

 -  यह नृत्य पार्वती जी ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए किया था। इसमें पुरुषों को चांम्फला एवं महिलाओं को चांम्फलो कहा जाता है। यह समान्यतः रुद्रप्रयाग  क्षेत्र का नृत्य है, इस नृत्य को गरबा एवं बिछुती संज्ञा दी जाती है। इस नृत्य के कलाकार इंद्रमणि बडोनी जी भी थे।
 

(9)तांदी नृत्य

- मुख्य रूप से हिमाचल का यह नृत्य  उत्तरकाशी में किया जाता है ,जो माघ माह में आयोजित किया जाता है यह नृत्य समसामयिक होता है ,लड़के - लड़कियां  अलग अलग लाइन में नृत्य करते है 
*जबकि चाँचरी में एक लड़का व एक लड़की मिल कर बाहर आते हैं।


(10)भैला नृत्य

 -  गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली के दिन इस नृत्य का आयोजन होता है

(11)रण-भूत नृत्य

 - गढ़वाल क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त करने वालों को देवता के समान आदर किया जाता है
 

  (i)  जीतू बड़त्वाल - 

 3(३) गति आषाढ़ को इस नृत्य का आयोजन किया जाता है।

   (ii) भानु-भौपोलों  नृत्य -  

भानु की  प्रेमीका का नाम अमरावती था।

   (iii) माधो सिंह भंडारी - 

 इनकी 33 वर्ष की आयु में उत्तरकाशी में मृत्यु।

   (iv) कप्पू चौहान -

 कप्पू ,अप्पू गढ़ का राजा था , अजय पाल बावन(52) गढ़ों को एक करना चाहता था, कप्पू चौहान जो कि 52वें गढ़ का राजा था, इस बात से इन्कार करता है। तो अजय पाल तब कप्पू चौहान का सिर काटता है।
 

(11)भड़ो या पावड़ा नृत्य

- इसमें वीरों की ऐतिहासिक गाथाओं को गाया व नृत्य के रूप पे प्रस्तुत किया जाता है। * चानमाला -चौरास के ज्यूंदों सेरा की रानी थी।

 (12)छोपती नृत्य

- यह  नृत्य गढ़वाल क्षेत्र का प्रेम भावना का नृत्य है, जिसमें संवाद प्रदान होता है।

(13) सिपहिया(सिपया) नृत्य

 -   गढ़वाल क्षेत्र का यह नृत्य देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत होता है।
 

(14)छोलिया नृत्य

- इस नृत्य में नीले सफेद रंग की ड्रेस पहनकर तलवारबाजी के रूप में न्रत्य को प्रस्तुत किया जाता।यह युद्ध प्रधान नृत्य है, यह पिथौरागढ़ में किया जाता है।

(15) चाँचरी नृत्य

-  चाँचरी चांदनी रात में किया जाने वाला नृत्य है इसे कुमाऊं में छोठा कहा जाता हैै।

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