उत्तराखंड का इतिहास/पौराणिक उत्तराखंड History of Uttarakhand in Hindi
- यह राजा भरत की जन्मस्थली है, पुराणों में इसे 'मानस',केदारखण्ड एवं कूर्मांचल कहा है।
- पुरातात्विक खोजो के अनुसार 'गढ़वाल' एवं 'कुमांऊ' पूर्व में मौर्य साम्राज्य का अंग था ,ऐतिहासिक खोजो से 'कुषाण' और 'कुणीदों' का यहां शासन होने के प्रमाण मिलते है।
- छठवी शताब्दी मैं यह 'पौरव वंश' के शासनाधींन था।
- छठवीं शताब्दी काल में प्रसिद्ध चीनी यात्री हवेन्सांग भी यहां आया था।
- सातवीं शताब्दी में यहां 'कत्यूरी राजवंश' का उदय हुआ, जिसने पूरे उत्तराखंड क्षेत्र को मिलाकर अपने साम्राज्य की स्थापना की जो 12वीं शताब्दी तक रहा।
- 'कत्यूरी राजवंश' के पतन के फलस्वरूप यह क्षेत्र 'चन्द' और 'पंवार' शासकों के अधीन रहा, इसी बीच कुमाऊं और गढ़वाल के रूप में इसका विभाजन हो गया।
- 16वीं शताब्दी में गढ़वाल में 'पंवार' और कुमाऊं में 'चन्द' शासकों का एकछत्र शासन था।
- सन 1771 में प्रद्युमन शाह का 'गढ़वाल' और 'कुमाऊं' सहित संपूर्ण उत्तरांचल(उत्तराखंड) क्षेत्र पर अधिकार हो गया, उत्तराखंड का अंतिम शासक प्रद्युमन शाह को माना जाता है।
- सन 1790 में कुमाऊ, नेपाली गोरखाओं के अधीन हो गया, तथा सन 1803 तक इसने गढ़वाल पर भी अपना आधिपत्य कर लिया।
- 1814 व 1815 के वर्षों में गोरखाओं ने उत्तराखंड पर अनेक अत्याचार किए, जिससे अंग्रेजों का ध्यान इस ओर गया , सन 1815 में अंग्रेजों ने गोरखाओं को परास्त कर 'उत्तराखंड' को अपने अधीन कर लिया ,सन 1815 में उत्तराखंड 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' के अधीन हो गया।
- इसके बाद 'हर्षदेव जोशी' ने तत्कालीन उत्तराखंड क्षेत्र के लिए विशेष अधिकार और रियायतों की मांग की ,इसी शताबदी में ब्रिटिश सरकार ने भूमि बंदोबस्त के द्वारा सार्वजनिक वन भूमि को अपने अधिकार में लेना आरंभ कर दिया था।
- इसी काल में प्रेस ,पत्रकारिता औऱ स्थानीय सगठनों का उदय हुआ,अंग्रेजो द्वारा प्राकृतिक अधिकार में दखल देने से स्थानीय विरोध भी हुआ।
- सन 1816 में अंग्रेजों औऱ गोरखाओं के बीच संगोली सन्धि हुई, सन्धि के अनुसार टिहरी रियासत सुदर्शनशाह को प्रदान की गई और शेष क्षेत्र को नॉन रेगुलेशन प्रांत बनाया गया, उत्तरी-पूर्वी प्रांत का है भाग रहा।
- नॉन रेगुलेशन प्रांत सन 1891 में खत्म कर दिया गया, सन 1901 में जब 'संयुक्त प्रांत आगरा एवं अवध बना तो उत्तराखंड क्षेत्र का विलय उसमे कर दिया गया।
- सन 1928 में इस क्षेत्र के प्रबुद्ध लोगो ने लेफिटीनेंट गवर्नर को एक प्रतिवेदन दिया, जिसमे सन 1814 से पूर्व कुमाँऊ को स्वतंत्र बताते हुए ब्रिटिश हुकूमत से इसे स्वायत बनाने की मांग की गई थी।
- 5 औऱ 6 मई 1938 में श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित कांग्रेस की विशेष सभा में उत्तरांचल (उत्तराखंड) क्षेत्र को स्वायत्तता देने की बात कही गई।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 'आगरा एवं अवध प्रांत (पूर्व में इसी राज्य में उत्तराखंड का विलय हुआ था) उत्तर प्रदेश राज्य कहलाया।
- सन 1947 में टिहरी रियासत का विलय भारत में नहीं हुआ था । 1948 में हुई जन क्रांति के समय सामंत शाही का तख्ता पलटने के पश्चात इस रियासत का भारत में विलय हुआ।
- चंद्र सिंह गढ़वाली ने पेशावर में 23 अप्रैल 1930 को जिस सैनिक क्रांति का सूत्रपात किया वह पेशावर कांड आजादी के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है, इसी घटना से प्रभावित होकर मोतीलाल नेहरू ने संपूर्ण देश में गढ़वाल दिवस मनाने की घोषणा की थी।
- स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखंड का योगदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। आजाद हिंद फौज की संख्या 40000 थी जिसमें 25 सौ गढ़वाली थे।
- उत्तराखंड के तीन लाख से अधिक भूतपूर्व सैनिक है।
- उत्तराखंड की ही तो रेजीमेंट गढ़वाल व कुमाऊं बनी।
- 50 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के प्रभावशाली नेता पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने यह कहकर उत्तराखंड राज्य की मांग का विरोध किया, की इसके पास अपने खर्च चलाने के लिए संसाधन तक नहीं है।
- पर्वतीय निवासियों के रोष को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1974 में पर्वतीय विकास परिषद की स्थापना की।
- सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1974 में ही निर्णय दिया की आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक विकास में यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है,इसलिए उत्तराखंड छात्रों को मेडिकल एवं इंजीनियरिंग कॉलेजों में 2% आरक्षण दिया जाए।
- वर्ष 1980 में उत्तराखंड में वन अधिनियम लागू पर इस क्षेत्र को शून्य प्रदूषण क्षेत्र घोषित कर दिया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत बिना केंद्र सरकार की अनुमति के पेड़ काटना औऱ खनिजों की खुदाई का कार्य करना गैरकानूनी हैै।
- इसके फलस्वरूप पर्वतीय लोग जो वनों पर आधारित रोजगार पर निर्भर थे ,ने बेरोजगार होकर अन्य शहरों की ओर पलायन करना प्रारंभ कर दिया।प्रदूषण रहित क्षेत्र होने की वजह से उद्योग-धंधे लगाने पर प्रतिबंध लग गया और यह क्षेत्र पिछड़ेपन का शिकार हो गया। ,इसी दौरान उत्तराखंड के पृथक राज्य की मांग पुनः जोर पकड़ने लगी।
उत्तराखंड का संघर्ष
- क्षेत्रीय समस्याओं पर विचार के लिए 1926 में कुमाऊं परिषद का गठन , जिसके कर्ताधरता गोविंद बल्लभ पंत, तारा दत्त गैरोला तथा बद्री दत्त पांडे थे।
- 1938 में श्रीदेव सुमन ने दिल्ली में गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की जिसे बाद में हिमालय सेवा संघ नाम दिया गया।
- आजादी के बाद 1950 में वृहद हिमालयी राज्य (हिमाचल और उत्तराखंड मिलाकर) के लिए पर्वतीय जन विकास समिति का गठन किया गया।
- जून 1967 में पर्वतीय राज्य परिषद का गठन, जिसके अध्यक्ष दया कृष्ण पांडे, उपाध्यक्ष गोविंद सिंह मेहरा और महासचिव नारायण दत्त सुंद्रियाल थे।
- 1970 में पीसी जोशी ने कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा गठित किया।
- 1972 में नैनीताल में उत्तराखंड परिषद का गठन किया गया।
- 1979 में मसूरी में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन के अवसर पर उत्तराखंड क्रांति दल का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष कुमाऊं वि०वि० के तत्कालीन कुलपति डी०डी० पंत चुने गए।
- 1988 में भारतीय जनता पार्टी के शोवन सिंह जीना की अध्यक्षता में उत्तराखंड उत्थान परिषद का गठन किया गया।
- 1988 सितंबर में उत्तराखंड प्रदेश संघर्ष समिति का गठन किया गया।
- 1989 फरवरी में तमाम संगठनों ने संयुक्त आंदोलन चलाने के लिए उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति गठित की ।
उत्तराखंड हेतु प्रमुख आंदोलन
- 1 सितंबर 1994 को खटीमा कांड।
- 2 सितंबर 1994 को मसूरी कांड।
- 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली में आयोजित रैली में भाग लेने जा रहे आंदोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर में फायरिंग की गई।
- 3 अक्टूबर 1994 को देहरादून में आंदोलन हुआ।
- राज्य के महान सपूत यशोधर बेंजवाल व राजेश रावत 10 नवंबर 1995 की रात श्रीयंत्र टापू श्रीनगर गढ़वाल में आंदोलन करते हुए पुलिस की बर्बरता के शिकार हुए, पुलिस ने उन्हें गोलियों से भून कर उनके शवों को अलकनंदा में डुबो दिया था।
उत्तराखंड का गठन
- उत्तराखंड के गठन के लिए उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक-2000 लोकसभा में 27 जुलाई 2000 को प्रस्तुत किया गया।
- लोकसभा में 1 अगस्त 2000 को व राज्यसभा में 10 अगस्त 2000 को यह विधेयक पारित किया गया ,इस विधेयक को राष्ट्रपति ने अपनी स्वीकृति 28 अगस्त 2000 को प्रदान की थी। तथा इसे अधिनियम के रूप में सरकारी गजट में अधिसूचित कर दिया गया था।
- उत्तरांचल (वर्तमान नाम उत्तराखंड) का औपचारिक गठन 9 नवंबर 2000 को किया गया। यह देश का 27वां राज्य बना।
- 2 मई 2001 को उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिला ,विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने वाला यह 11वां राज्य है।
- उत्तरांचल का नाम 1 जनवरी 2007 से उत्तराखंड कर दिया गया।
उत्तराखण्ड का परिचय Introduction of Uttarakhand
- उत्तराखंड का राज्य पशु -कस्तूरी मृग है।
- उत्तराखंड का राज्य पक्षी - मोनाल है।
- उत्तराखंड का राज्य वृक्ष - बुरांश है।
- उत्तराखंड का राज्य पुष्प - ब्रह्म कमल है।
- उत्तराखंड का उच्च न्यायालय - नैनीताल (अस्थाई)।
- उत्तराखंड का खाता 2192.08 करोड़ रुपये से 9 नवंबर 2000 को खुला।
- उत्तराखंड का क्षेत्रफल - 53,483 वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में स्थान - 18वां।
- उत्तराखंड का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला जिला - उत्तरकाशी,उत्तराखंड का न्यूनतम क्षेत्रफल वाला जिला चंपावत है।
- जनसंख्या की दृष्टि से देश (राज्य/केंद्र शासित) में उत्तराखंड का स्थान - 20वां है।
- उत्तराखंड में भारत की कुल जनसंख्या का -0.84% है।
- जनसंख्या की दृष्टि से उत्तराखंड का सबसे बड़ा जिला - हरिद्वार है, व जनसंख्या की दृष्टि से सबसे छोटा जिला - रुद्रप्रयाग है।
- जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से देश (राज्य/केंद्रशासित) में उत्तराखंड का स्थान -25वां है।
- जनसंख्या घनत्व (2011 की जनगणना)- 189 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर ।
- उत्तराखंड का सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला जिला -हरिद्वार व न्यूनतम जनसंख्या घनत्व वाला जिला - उत्तरकाशी है।
- लिंगानुपात की दृष्टि से देश में उत्तराखंड का 14 वां स्थान है।
- कुल साक्षरता (2011) - 78.8%.
- साक्षरता की दृष्टि से देश में उत्तराखंड का 17वां स्थान है, उत्तराखंड का सर्वाधिक साक्षरता वाला जिला - देहरादून 84.25%।
- मंडल - (1) कुमाऊँ मंडल। (2) गढ़वाल मंडल।
- नगर निगम - 06
- नगरों की संख्या- 116.
- लोकसभा सीटें - 5
- राज्यसभा सीटें - 3
- विधानसभा सीटें -70 +1 = 71.
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