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उत्तराखंड की चित्रकला
> प्रोगतिहासिक काल मे 'शैल्य चित्रों' के द्वारा उत्तराखंड चित्रकला के साक्ष्य प्राप्त हुए है
> लखु उड़्यार (अल्मोड़ा) में मानव के अकेले व समूह में नृत्य मुद्रा के शैल्य चित्र पाए गए।
>गोरख्या उड़्यार (चमोली) से पशुओं के शैल चित्र प्राप्त हुए। उत्तराखंड की चित्रकला
>प्प्रोगतिहासिक काल मे 'शैल्य चित्रों' के द्वारा उत्तराखंड चित्रकला के साक्ष्य प्राप्तहुए है
>लखु उड़्यार (अल्मोड़ा) में मानव के अकेले व समूह में नृत्य मुद्रा के शैल्य चित्र पाए गए।
>गोरख्या उड़्यार (चमोली) से पशुओं के शैल चित्र प्राप्त हुए।
>चमोली के किमनी गावँ से श्वेत रंग के शिकार करते हुए शैल चित्र प्राप्त हुए।
>अल्मोड़ा के ल्वेथाप से 'मानव का हाथ' में हाथ रखकर समूह में शैल चित्र प्राप्त हुए।
>उत्तरकाशी के हुडली से नीले रंग के शैल चित्र प्राप्त हुए।
उत्तराखंड चित्रकला पमार वंश के राजाओ के समय सर्वोच्च शिखर पर पहुँची थी। सन 1658 में सुलेमान शिखों ने गढ़वाल एरिया में शरण ली थी, ओरंगजेब के डर से उन्होंने पृथ्वीपति शाह के यहाँ शरण ली थी। इसके(सुलेमान शिखों के साथ दो मुगल चित्रकार श्याम दास व हरदास भी आये। हरदास की पत्नी का सोनिका था ,व श्याम दास की शादी नहीं हुई थी। मौलराम गढ़वाल चित्रकला शैली के स्रवोच्य चित्रकार रहे है।,मौलराम तोमर वंश से सम्बंधित थे। हीरालाल के पुत्र मंगलाल व मंगलाल के पुत्र मौलराम थे। मौलराम की चित्रकला को देखने के लिए प्रीतम शाह टिहरी से आते थे। बैरिस्टर मुकंदी लाल ने मौलराम तोमर के चित्रों को वैश्विक ख्याति दिलायी।
> बैरिस्टर मुकंदी लाल ने कुछ पुस्तकों की रचना की - (a) ''Some Notes of MollaRam.'' (b) '' Garhwal Painting''. (c) ''Garhwal school of Painting''.
> सी आर्चर ने गढ़वाल पेंटिंग नामक पुस्तक को english में लिखा।
> पहाड़ी चित्रकला पुस्तक के लेखक किशोरीलाल वैध जी थे।
>गढ़वाल चित्र शैली एक सर्वेक्षण के लेखक डॉ यशवंत प्रदोक्च जी है।
>ऐपण - गढ़वाल चित्रकला शैली जिसमे मिट्टी की लिपाई से चित्रों को बनाया जाता है।
>ज्योति मात्र का चित्र - इनमे विभिन्न रंगों से देवी-देवताओं के चित्र बनाये जाते है।
>लक्ष्मी पौ चित्र - दिवापली के अवसर पर मुख्य द्वार से तिजोरी तक लक्ष्मी के पदचिन्हों को बनाया या लगाया जाता है।
>सेली- आरती की थाली पर सेली चित्रकारी का प्रयोग (आटे के दिप आदि)
>खोडिया - वेदी पर चित्रकला ,मंडप पर खोडिया(चित्रकारी) का प्रयोग।
>शंयूँ - बुरी आत्मा से रखचा हेतु,(भूत प्रेत पूजना चित्रकारी का प्रयोग शंयूँ।
उत्तराखंड राज्य की शिल्पकला काष्ठकला
उत्तराखंड राज्य की रूढ़ियां जाती काष्ठकला में लगी हुई हुई है,जबकि राज्य की राजी जनजाति काष्ठ कला का अदृश्य व्यापार करती है।
>चमोली , अल्मोड़ा, एवं पिथौरागढ़ में हस्तशिल्प उद्योग चलता है।
>मोस्ठा रिंगाल से बनाया जाने वाला उत्पाद है।
> बेंत से उत्तराखंड राज्य में टोकरियाँ बनाई जाती है, राज्य में भाँग के पौधे से रेशा बना कर कंबल,दरी,व रशियां बनाई जाती है।
> पिथौरागढ़ में पशमीना नामक भेड़ की उन से पंखी ,घन, कंबल, थुलमा,चूल्हा बनाया जाता है।
>राज्य में मिट्टी के बर्तन दिये,चिलम, गुलक बनाने वालों को डीकाल या ढीकाल कहा जाता है,
>उत्तराखंड राज्य में चर्मशिल्प पर कार्य करने वालो को बाढ़ई या शारकी कहा जाता है।
Must read - उत्तराखंड का इतिहास व परिचय
उत्तराखंड चित्रकला पमार वंश के राजाओ के समय सर्वोच्च शिखर पर पहुँची थी। सन 1658 में सुलेमान शिखों ने गढ़वाल एरिया में शरण ली थी, ओरंगजेब के डर से उन्होंने पृथ्वीपति शाह के यहाँ शरण ली थी। इसके(सुलेमान शिखों के साथ दो मुगल चित्रकार श्याम दास व हरदास भी आये। हरदास की पत्नी का सोनिका था ,व श्याम दास की शादी नहीं हुई थी। मौलराम गढ़वाल चित्रकला शैली के स्रवोच्य चित्रकार रहे है।,मौलराम तोमर वंश से सम्बंधित थे। हीरालाल के पुत्र मंगलाल व मंगलाल के पुत्र मौलराम थे। मौलराम की चित्रकला को देखने के लिए प्रीतम शाह टिहरी से आते थे। बैरिस्टर मुकंदी लाल ने मौलराम तोमर के चित्रों को वैश्विक ख्याति दिलायी।
प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण एवम स्पष्ट जानकारियां देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंThanku for your valuable comment.
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